बवाना: मुसलमान,
मुहर्रम और महापंचायत
बवाना में महापंचायत क्यों की
गई? क्या इसका मकसद सिर्फ
मुहर्रम जुलूस को बवाना गांव तक नहीं पहुंचने देना था? क्या
यह जुलूस पहली बार निकाला जा रहा था? क्या
मुसलमान जुलूस के रास्ते को लेकर किसी जिद या मांग पर अड़े थे? क्या
पिछले जुलूसों में मुसलमान हिंसा या सांप्रदायिक तनाव फैलाने की कोशिश कर
चुके हैं? पहले सवाल को
छोड़कर सभी के जवाब हैं नहीं। यहां लगातार बढ़ रहे तनाव और नाज़ुक हालात को
देखते हुए जेजे कॉलोनी के मुसलमानों ने पुलिस की मौजूदगी में 24 अक्टूबर को
एक फैसला किया। तय हुआ कि मुहर्रम का जुलूस जेजे कॉलोनी में ही मनाया जाएगा।
इसकी ख़बर सभी को मिली। पुलिस, प्रशासन, स्थानीय नेता और विरोध कर रहे लोगों
को इसकी जानकारी मिली। फिर भी महापंचायत की गई। क्यों?
महापंचायत शाम 4 बजे धाधूराम
मार्केट में लगी। शाम चार बजे से बवाना और आसपास के गांव के बुज़ुर्ग और
नौजवान जत्था दर जत्था यहां पहुंचने लगे। पांच बजे तक यहां 2 हज़ार से
ज़्यादा की भीड़ इकट्ठा हो चुकी थी। चौपाल में घुसते वक्त नौजवान दोनों हाथ
ऊपर उठाकर, मुट्ठी भींचते हुए वंदे मातरम, भारत माता की जय, गऊ माता की जय के
नारे लगा रहे थे। इससे पहले यहां देशभक्ति गीत बजाए जा रहे थे। महापंचायत
मथुरा से बुलाए गए ‘लोक कवि’ की
वीर रस वाली कविताओं से शुरू हुई। इसके बाद जोशीले अंदाज़ में एक चेतावनी
जारी हुई- ‘यहां आए सभी
लोग महापंचायत के फैसले का समर्थन करें, वरना ऐसे लोगों के साथ किया जाने
वाला बर्ताव महापंचायत तय करेगी।’
यह चेतावनी नरेश नाम के एक
शख्स ने जारी की। इन्होंने और क्या-क्या कहा।
1- वह
(मुस्लिम) हमेशा तैयारी के साथ आते हैं, इस बार हम तैयार हैं।
2- हम
कायर नहीं हैं, हमें कमज़ोर नहीं समझा जाए।
3- ताजिया
आया तो हम आत्मरक्षा करेंगे। आत्मरक्षा हर आदमी का अधिकार है।
फिर नरेश ने मंच पर पहले वक्ता
धर्मेंद्र को बुलाया। यह दिल्ली के ही कंझावला इलाके से शामिल होने के लिए
महापंचायत में पहुंचे थे।
1- हमारे
वोट बंटे हुए हैं लेकिन हमें कमज़ोर ना समझा जाए।
2- यहां
मौजूद गुप्तचर ध्यान से सुन लें कि हम दंगा नहीं कराना चाहते। दंगा कराना
होता तो महापंचायत नहीं रखते।
3- हम
शास्त्र पढ़ना जानते हैं और शस्त्र के भी ज्ञाता हैं।
4- इतिहास
सिर्फ उंगलियों से लिखा नहीं जाता है, यह बरछी और बल्लम से बनाया भी जाता है।
5- यह
(ताजिया जुलूस) सात साल से चल रहा है लेकिन अब हम जाग चुके हैं। हम यहां
(ताजिया) नहीं आने देंगे।
तीसरे वक्ता डॉक्टर रामनिवास
सेहरावत ने कहा कि उन्होंने इस तरह का ताजिया कभी नहीं देखा। वे मिट्टी का
तेल पीकर आग लगाते हैं। हिंसा करते हैं। हमारे बच्चों पर बुरा असर पड़ा रहा
है। सेहरावत चेतावनी भरे लहज़े में कहते हैं कि प्रशासन घोषणा कर दे कि वह (मुस्लिम) बवाना
गांव में एंट्री नहीं करेंगे। इन सबसे बढ़कर भड़काऊ इशारा कांग्रेस काउंसलर
देवेंद्र सिंह पोनी ने किया। मंच पर कांग्रेस काउंसलर के अलावा बीजेपी एमएलए
गुगन सिंह भी मौजूद थे। कांग्रेस काउंसलर पोनी बोले-मैं कभी भी इस हक में
नहीं रहा कि ताजिया गांव में आए। वे अपना ताजिया जुलूस जेजे कॉलोनी में
मनाएं। उन्होंने घोषणा की कि ताजिया रोकने के लिए महापंचायत उन्हें कोई भी
ज़िम्मेदारी दे दे, वह सबसे आगे नज़र आएंगे। राजनीति बाद में है और मेरा समाज
पहले। पोनी जैसा ही तेवर बीजेपी एमएलए गुगन सिंह का भी रहा। उन्होंने भी कहा
कि ताजिया लेकर गांव में आने की ज़रूरत नहीं है। वहीं अपनी जेजे कॉलोनी में
जुलूस निकालें।
यह तमाम बयानबाज़ी उस वक़्त
झूठ, साज़िश, मक्कारी और सांप्रदायिकता को बढ़ावा देने वाली साबित होती है,
जैसी ही जेजे कॉलोनी के मुसलमानों का फैसला याद आता है। मुहर्रम के 10 दिन
पहले ही बवाना गांव तक जुलूस नहीं ले जाने का फैसला हो चुका था, फिर भी
भड़काऊ भाषण, पैम्फलेट और महापंचायत बुलाई गई? मुसलमानों
का कहना है कि सांप्रदायिक राजनीति के बहाने गांव की शांति भंग की जा रही
है। हममें डर बैठ गया है और अब हम हमेशा अपना त्यौहार अपनी ही बस्ती में
मनाएंगे।
महापंचायत से इतर बवाना की मेन
सड़क पर मौजूद दुकानदार इस जुलूस के बारे में क्या सोचते हैं? बवाना
मेन चौक पर दुकानदार अश्विनी कुमार और उनके जैसे ज़्यादातर लोग महापंचायत और
उसकी गतिविधियों से सहमत हैं। वह कहते हैं कि मुस्लिम उपद्रवी होते हैं, ऐसा
हर जगह देखने को मिलता है। दूसरे दुकानदार ललित शर्मा कहते हैं कि जुलूस के
दौरान हथियार लहराकर मुसलमान ‘शक्ति
प्रदर्शन’ करते हैं।
लाठी, डंडे से लैस रहते हैं, दंगा भड़काने में आगे रहते हैं। इनकी मस्जिदें
हथियारों से लैस हैं। इनमें घुसने की इजाज़त पुलिस को भी नहीं है। सारी
मस्जिदें चेक होनी चाहिए। यह सच्चाई है कि हिन्दुस्तान में रहकर मुस्लिम
आतंकवाद फैलाते हैं। दुकानदार राम सिंह की भी यही राय है। वह कहते हैं कि
जहां कहीं भी हिंदू धर्म का कोई प्रोग्राम होता है, मुसलमान वहां दंगा
भड़काने की कोशिश करते हैं। राम सिंह का इशारा त्रिलोकपुरी की तरफ था।
त्रिलोकपुरी में क्या हुआ था? यह
पूछने पर ललित कहते हैं कि उन्हें ‘व्हाट्सएप’ के
ज़रिए सब पता चला है।
बवाना में शांति कौन भंग कर
रहा है?
केंद्र में बीजेपी सरकार बनने
के बाद यहां सांप्रदायिक गतिविधियों में तेज़ी आई है लेकिन इसकी जड़ें 2012
की एक घटना से जुड़ी है। जाट बाहुल्य बवाना इलाका मर्डर, रॉबरी, फिरौती और
गैंगवॉर के लिए बदनाम है। यहां का डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी इंडस्ट्रीयल
पार्क शानदार योजना के तहत खड़ा किया गया है, इसलिए भी जाना जाता है। इसके
अलावा बवाना की गौशालाएं सुर्खियां बटोरती हैं। राजनीति और तनाव की जड़ें
इन्हीं में से कुछ गौशालाओं से निकलती हैं। इन गौशालाओं से आसपास और दूसरे
राज्यों के लोग गाय या बैल लेकर जाते हैं। 2012 में अमरजीत नाम का एक शख्स
हरियाणा से बवाना पहुंचा। बकरीद के दिन इसने पुलिस को फोन करके गुमराह किया
कि मस्जिदों में कुर्बानी के लिए गाय काटी जा रही हैं। बकरीद के दोनों दिन
लगातार पहुंचने के बाद पुलिस के हाथ खाली रहे लेकिन मुसलमानों के त्योहार में
बदमज़गी ज़रूर पैदा हुई। अमरजीत यहीं डटा रहा और गौशालाओं से गाय या बैल ले
जा रहे लोगों को रोकना शुरू किया। आउटर डिस्ट्रिक्ट की नरेला पुलिस बताती है
कि 2012 में यूपी के एक हिंदू परिवार को इसने रोका और उनके गाय-बैल छीन लिए।
इसी परिवार की शिकायत पर मुकदमा कायम करके अमरजीत को अरेस्ट किया गया था।
पूछताछ में इसने ख़ुद को गौ रक्षक बताया। साथ ही, यह भी बताया कि यह मेनका
गांधी की एनजीओ से जुड़ा हुआ है। अमरजीत की गिरफ्तारी से ही यहां ‘गाय
और मुसलमानों’ की
राजनीति शुरू हुई। फिर इनपर दबाव बढ़ता गया और हिंदूओं में नफरत भी। इस साल
बकरीद के मौके पर तकरीबन 40-50 लड़के जेजे कॉलोनी की मस्जिदों में चेकिंग के
नाम पर घुस गए। मौके पर पहुंची पुलिस ने दो लड़कों को अरेस्ट किया लेकिन इनका
अभियान जारी रहा। मौजूदा जुलूस का रास्ता बंद करवाना सीधे तौर पर गाय की
राजनीति से बेशक नहीं जुड़ा है लेकिन जड़ यही है। नफरत की राजनीति यहीं से
शुरू हुई है।
महापंचायत किसने बुलाई?
महापंचायत में कांग्रेस,
बीजेपी समेत कई समाज के लोग मौजूद थे। जुलूस के ट्रेडिशनल रूट पर पाबंदी की
पहल बवाना गांव के तकरीबन दो दर्जन लड़कों ने शुरू की। मज़बूत कदकाठी वाले इन
लड़कों की बाहें बात करते वक्त फड़कती हैं और किसी से भी भिड़ने के लिए तैयार
दिखते हैं। कांग्रेस काउंसलर पोनी ने महापंचायत में इन लड़कों को बधाई दी कि
यह मुहर्रम का जुलूस जेजे कॉलोनी तक सीमित रखने में कामयाब हुए। मुसलमान कहते
हैं कि इस महापंचायत का समर्थन आम आदमी पार्टी के लोकल नेता भी करते हैं। वह
खुलकर भले ही सामने ना आएं।
बवाना के मुसलमान
बवाना गांव और जेजे कॉलोनी के
बीच एक नहर है। यह बवाना नहर के नाम से जानी जाती है। बवाना गांव में रहने
वाले जाट ही यहां के पुराने बाशिंदे हैं। नहर के दूसरी तरफ जेजे कॉलोनी 2004
में बसाई गई है। यमुना के किनारे रहने वालों को लाकर यहां बसाया गया है। इस
कॉलोनी में 70 फीसदी मुसलमान और बाकी हिंदू हैं। ज़्यादातर बिहार और बंगाल के
हैं। सभी रेहड़ी-पटरी समेत छोटी-मोटी दुकानें चलाते हैं और आपस में कोई तनाव
या शिकायत नहीं है। बवाना गांव और जेजे कॉलोनी के बीच की दूरी तकरीबन एक से
डेढ़ किलोमीटर है और इस दूरी में आबादी लगभग नहीं है। बवाना नहर पर हनुमान,
शनि और काली के तीन बड़े और भव्य मंदिर हैं। गांव के लोग यहीं पूजा करने आते
हैं और चाहते हैं कि जेजे कॉलोनी के लोग यहां तक नहीं आएं। यहां का मुसलमान
कहता है कि हम बाद में बसाए गए हैं और स्थानीय लोगों को अपना बड़ा भाई मानते
हैं। जुलूस वहां तक नहीं ले जाना एक मामूली मसला था। इसे बातचीत से सुलझाया
जा सकता था लेकिन महापंचायत बुलाई गई। इस बात की तकलीफ है। पुलिस बार-बार
हमारी सुरक्षा कर रही है। उन्हीं के सहारे जी रहे हैं।
शाहनवाज़ मलिक