Transcript CPI-M Polit Bureau Member, Brinda Karat
Communalism Combat-Hillele TV Interview (Hindi)

 

 Published on Monday October 27, 2014

 

तीस्ता सेतलवाड :    कम्युनलिज़्म कॉम्बैट की ख़ास मुलाक़ात में आपका स्वागत है। आज हम सीपीएम की पोलित ब्यूरो मेंबर, एडवा की फॉर्मर जनरल सेक्रेटरी और एक जुझारू नेता वंदा करात से मुलाक़ात करेंगे। वृंदाजी आपका स्वागत है। 2014 में वामपंथी ताक़तों की रेलवेंस, अहमियत और उनकी फ्यूचर स्ट्रैचजी क्या है?

वृंदा करात:                वामपंथियों की प्रासंगिता इन्हीं दो महीनों में साफ हो चुकी है। दो महीने में मोदी सरकार ने मज़दूर, किसान और नरेगा जैसी स्कीम पर जबरदस्त तरीक़े से हमला बोला है। सरकार आरएसएस के कंट्रोल में है और मोदी के साथ-साथ अपना अजेंडा भी चला रहे हैं। कई सांप्रदायिक घटनाएं होने के बावजूद मोदी साइलेंट हैं लेकिन क्यूं साइलेंट हैं? क्यूंकि इनके पीछे जो भी हैं, वे सीधे या परोक्ष तौर पर हिंदुत्व अजेंडा के साथ जुड़े हैं। आख़िर इन सवालों पर कौन लड़ा था? किसने इस गरीब देश की आज़ादी, मज़दूर-किसान और सेक्यूलरिज़्म के सवाल पर बिना समझौता किए लड़ाई लड़ी है।

तीस्ता सेतलवाड :     देश में कॉरपोरेट के लिए माहौल बना हुआ है। मीडिया भी कॉरपोरेट के कब्ज़े में है। मार्केटिंग स्ट्रैटजी से कॉरपोरेट्स नई पीढ़ी के वोटर्स को लुभाने में कामयाब हुए हैं। वामपंथी ताकतें रुपए और मीडियम से जुड़ी इन चुनौतियों का मुक़ाबला कैसे करेंगी?

वृंदा करात:                देखिए मीडियम हमें समझना पड़ेगा लेकिन सिर्फ नई टेक्नोलॉजी से खुद को अपटेड करने से काम नहीं चलेगा। हमें इस इश्यू के ऊपर जाना चाहिए। हमारा मैसेज और व्यापक होना चाहिए। इसके बावजूद मैं आपसे कहती हूं कि लेफ्ट तरीका ही कारगर है। जनता के साथ रिश्ते मज़बूत करे। नीति आधारित पॉलिटिक्स करे। इसमें कोई दो राय नहीं कि हम इस बार पीछे रह गए।

तीस्ता सेतलवाड :    60, फिर 30, फिर 10?

ब्रिन्दा करात :           मैं फिर आपसे कहना चाहती हूं कि अगर आप नीति आधारित पॉलिटिक्स करेंगे तो लोग कब तक झूठ के प्रचार पर विश्वास करेंगे। मुझे यह भी लगता है कि सॅच्युरेशन पॉइंट आ जाता है। लेकिन फिर भी हिन्दुस्तान की राजनीति में कॉरपोरेट का जो सीधा हस्त्क्षेप है, मुझे लगता है कि सबसे खतरनाक है। फिलहाल सबसे बड़ी चुनौती हिंदुस्तान की जनवादी प्रणाली के लिए है।   

तीस्ता सेतलवाड :     इसके खिलाफ आवाज़ कहां से और कब उठेगी?

वृंदा करात :               उठ तो रही है।

तीस्ता सेतलवाड :        सही बात है।

वृंदा करात:                अब सभी उठा रहे हैं यह सवाल। लेकिन इलेक्शन कमीशन को भी सोचना चाहिए ना कि एक पार्टी और एक व्यक्ति ने पांच हज़ार करोड़ रूपए का इस्तेमाल प्रचार के लिए किया। इलेक्शन कमीशन ने इस सवाल को क्यों नहीं लिया? कानून और नियम बदलने की ज़रूरत है। आप एक और अजीब बात देखिए। उत्तर प्रदेश में बीएसपी को 20 फीसदी वोट मिला लेकिन सीट जीरो। बंगाल में लेफ्ट को 31 फीसदी वोट मिला लेकिन सीट दो मिली। वहीं बीजेपी को देश भर में 31 फीसदी वोट मिले और वो तिहाई बहुमत में आ गए। तो यह जो फर्स्ट सिस्टम है, इस पर भी विचार करने की ज़रुरत हैं। मेरे कहने का मतलब है कि पैसा, कॉरपोरेट हिन्दुस्तान में हमारे सिस्टम और जनवादी प्रणाली कमजोर कर रहा है।

तीस्ता सेतलवाड :     वामपंथी राजनीति और महिलाओं के सवाल में कितना टेंशन हैं?

वृंदा करात :               टेंशन तो नहीं है। टेंशन तो तब होगा जब कोई टकराव हो। हमारा पॉइंट यह है कि वामपंथी पॉलिटिक्स के राजनीतिक एजेंडा में जो औरतों का सवाल हैं, वो एजेंडा केवल महिलाओं के लिए नहीं बल्कि वामपंथियों के प्राथमिक एजेंडा के एक हिस्से के रूप में लाने की ज़रुरत हैं। पिछले दशक में कुछ हद तक इसमें काफी बदलाव आया है और हम काफी आगे बढ़े हैं लेकिन अभी इस पर और ज़ोर देने की जरुरत है।

तीस्ता सेतलवाड :                 आल इंडिया डेमोक्रेटिक विमंस एसोसिएशन का तो इसमें बड़ा हाथ रहा है।

वृंदा करात :               अखिल भारतीय जनवादी महिला समिति, निश्चित रूप पर एक बहोत व्यापक एक रिश्ते हैं।

 

तीस्ता सेतलवाड :               कौन कौन से सवाल एडवा ने उठाया है?

वृंदा करात        मैं बताती हूं लेकिन मेन बात यह हैं कि एडवा और सीपीएम एक नहीं है क्यूंकि एडवा और सीपीएम की सदस्यता एक नहीं है। अगर आप एडवा का मापदंड देखना चाहते हैं तो कोई भी महिला जिसकी कोई भी पीड़ा हो,  वो एडवा के पास आये चाहे वो किसी भी पोलिटिकल पार्टी के हो एडवा उनकी संगठन बन सकती हैं। तो पार्टी का वो अलग कार्यक्रम हैं। इसलिए एडवा ने नागरिक सम्बंधित जितने भी मुद्दे हैं उठाये, हिंसा से जुड़े जितने भी मुद्दे हैं उठाये और मजदुर-किसान से जुड़े जितने भी मुद्दे हैं उठाए।

तीस्ता सेतलवाड : अगर आप नई सरकार का सबसे पहला एजेंडा देखें तो लग रहा हैं कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की सोच इतिहास में बढ़ाना और उन्हें पाठ्यपुस्तकों में दोबारा वापस लाना। इसके बारे में दीनानाथ बत्रा को लेकर जो किताबें इस साल गुजरात में इंट्रोड्यूस की गयी हैं, उसके बारे में आप क्या कहेंगी?

वृंदा करात        पहले तो मेरा एक सवाल है कि गुजरात की जनता इसको कैसे बर्दाश्त कर रही है।  गुजरात की जनता और गुजरात के बच्चों के ऊपर इस प्रकार का बिलकुल मतलब, बगैर किसी दलील, बिना किसी सच्चाई के इसे थोपा रहे हैं। गुजरात के बच्चों को वो क्या पढ़ा रहे हैं। अमेरिका में एनआरआई बनने के बाद गुजरात के बच्चे नस्लीय शब्द का इस्तेमाल करेंगे क्यूंकि दीनानाथ बत्रा ने कहा है कि एफ्रो अमेरिकन एक नीग्रो हैं, और नीग्रो को भैंस की तरह बांध कर सज़ा दी जानी चाहिए जो टेक्स्ट बुक में है। अब अगर गुजरात का बच्चा अमेरिका में एनआरआई बनेगा और ये सोच लेकर जायेगा तो वहां के कानून के मुताबिक उसे जेल भेज दिया जाएगा। तो वो जो भी पढ़ा रहे हैं, बिलकुल गलत पढ़ा रहे हैं। 

तीस्ता सेतलवाड : संवैधानिक मूल्य और गुजरात के स्कूल की किताबों में कोई मापदंड नहीं है। शिक्षा में संवैधानिक मूल्य सबसे पहले होने चाहिए लेकिन आरएसएस और संविधान के बीच बेहद गैप है। मौजूदा सरकार आरएसएस चला रही है। ऐसे में यह भारतीय लोकशाही के लिए किस तरह की चुनौती है?

ब्रिन्दा करात : बेशक यह भारतीय लोकशाही की सबसे बड़ी चुनौती है, लेकिन मैं आपसे ये भी कहूँगी की शिक्षा का जो मानसिक रूप में पुरे देश के बच्चों के ऊपर जो एक गलत मैसेज जा रहा हैं। इसके अलावा दूसरी सबसे खतरनाक चीज़ यह है कि अपनी राजनीतिक रोटी सेकने के लिए पार्टियां समाज में नफरत की हवा भर रही हैं, आग लगाई जा रही है। मैं समझती हूं कि यही सबसे खतरनाक है। वरना जिस शख्स पर आज भी मुकदमे हैं। सुप्रीम कोर्ट के सामने उसके केसेज़ हैं, बीजेपी ने उसे अपनी पार्टी का प्रेजिडेंट बना दिया है। उनको अध्यक्ष बनाना बीजेपी की तरफ से एक बेहद स्ट्रांग मैसेज है।

जिस शख़्स पर मुक़दमे हैं, बीजेपी ने उसे प्रेज़िडेंट बनाकर स्ट्रॉंग मैसेज दिया है-वृंदा करात

तीस्ता सेतलवाड : सीपीएम की  सेंट्रल कमिटी और पोलित ब्यूरो में आपके काम के बाद महिलाओं की भागीदारी बढ़ी है और पार्टी के दूसरे संगठन में भी महिलाओं की नुमाइंदगी बढ़ी है।  

वृंदा करात : नहीं। इसमें मेरे काम की कोई भूमिका नहीं है लेकिन पार्टी की हर लेवल पर जुड़ी हुई है। इस दौर की महिलाओं के काम को देख कर यह माना जा रहा है कि पार्टी में उनको लीडरशिप पोजिशन में लाने की बेहद सख़्त ज़रूरत है। तो पहले जहां दो होती थीं, अब वहां आठ हैं। लिहाज़ा ये ज़रूरी है कि हर लेवल पर डिसीज़न मेकिंग बॉडीज और दूसरी ज़िम्मेदारियों में महिलाओं की भागीदारी होनी चाहिए।

तीस्ता सेतलवाड : आख़िरी सवाल। सीपीएम भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस को एक ही नज़र से देखती है या फिर उन्हें अलग-अलग समझती है? और किस मुद्दे पर उन्हें एक साथ देखती है और किन मुद्दों पर अलग?

वृंदा करात :  देखिये बीजेपी और आर एस एस की सरकार आज चल रही है लेकिन सड़कें बनाने वाली तो कांग्रेस ही है। उनकी गलत आर्थिक नीतियों से आज भी सबक नहीं लिया जा रहा है। कॉरपोरेट समर्थित उन्हीं आर्थिक नीतियों पर आज भारतीय जनता पार्टी तेज़ी से चल रही हैं। अगर बीजेपी पार्लियामेंट में आज चार बिल ला रही है तो कांग्रेस की आवाज़ कहा हैं? अगर कांग्रेस राज्यसभा में मना करे तो ये बिल पास नहीं हो सकते। लेकिन कांग्रेस साथ दे रही हैं क्यूंकि बीजेपी-कांग्रेस एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।

कांग्रेस की सरकार आज है लेकिन देश की सड़कें कांग्रेस ने बनवाई है-वंदा करात

कांग्रेस की कॉरपोरेट समर्थित गलत नीतियों को बीजेपी तेज़ी से आगे बढ़ा रही है-वृंदा करात  

तीस्ता सेतलवाड : यानीकि राज्यसभा में कामगारों के मुद्दे पे जो बिल लाये जा रहे हैं, कांग्रेस उसका विरोध नहीं कर रही है?

वृंदा करात नहीं। अभी वो बिल आए ही नहीं हैं।

तीस्ता सेतलवाड : आया ही नहीं हैं? राइट।

वृंदा करात : इसके पहले तो बहुत सारे ड्राफ्ट्स कांग्रेस खुद ही लायी है जिसे हम लोगो ने विरोध करके रुकवाया। जो अच्छी चीज़ हैं वो अलग बात हैं। जो बुरी चीज़ हैं उसके लिए जो कांग्रेस ने बिल लाये वो भारतीय जनता पार्टी और उसमे जोड़ कर,  वो ला रही है

तीस्ता सेतलवाड : तो आर्थिक नीतियों पर हम ये मानते हैं कि उनकी ज़्यादातर जो निओलिबरल पॉलिसीज़ हैं, वो एक जैसी हैं। भारतीय जनता पार्टी और भी उस तरफ बढ़ेगी लेकिन जो बाकि मुद्दे हैं-जैसे कम्यूनलिज़्म है, कास्ट है, जेंडर है, उसमें आप क्या समानता या फर्क  देखती हैं?

वृंदा करात देखिए कांग्रेस ब्रांड ऑफ़ सेक्युलरिज़्म से हमारा कुछ लेना देना नहीं हैं। हम आरएसएस के विरोधी हैं। हम ये मानते हैं कि कांग्रेस के पीछे आर एस एस नहीं हैं। लेकिन सेक्यूलरिज़्म के बारे में उनका रुख़ अवसरवादी है। गुजरात के 2002 नरसंहार के बाद कांग्रेस सरकार में थी। वो क्यों नहीं एक कानून लेकर आए?

तीस्ता सेतलवाड : कम्यूनल वॉयलेंस बिल?

वृंदा करात : जी। आख़िर क्यों नहीं कानून लाए? गुजरात के तमाम केसेस जो आप जैसी बहादुर इंसान अपनी जान जोखिम में डालकर लड़ रही है, उनमें कांग्रेस क्यों नहीं आगे आई? उस वक्त कांग्रेस सरकार क्या कर रही थी? मुझे पता है। मैं उस समय पार्लियामेंट में थी। कितनी बार हमने यह सवाल उठाया है कि आप लोग इसमें कुछ कीजिए। सुप्रीम कोर्ट में इंटरवीन कीजिए। आप अपने एडवोकेट जनरल या जो वहां हैं, उनको कहिए, लेकिन कुछ भी नहीं किया। जितने निर्दोष मुसलमानों को जेल में बंद रखा गया, लेकिन कांग्रेस ने उनके बारे में क्या किया? कुछ नहीं क्योंकि बीजेपी विरोध करेगी, बीजेपी सवाल उठाएगी। इसलिए कांग्रेस ने तटस्थ नीति अपनायी। मैं कहती हूं कि इस टाइप के सेक्युलरिज़्म से देश का फायदा नहीं हैं।

तीस्ता सेतलवाड : ये जो सरकार बनी है, उसके विरोध में जनता उठेगी?

वृंदा करात :         जनता उठेगी और बहुत जल्द उठेगी। जनता ने जो अच्छे दिन के सपने देखा है, वह 14 परसेंट रेल भाड़ा, महंगाई, 80 रुपए किलो टमाटर, बैंगन के दाम, दाल के दाम, चावल, गेहूं के रूप में सामने आ रही है। सबका दाम बढ़ रहा हैं। अगर ये मोदी सरकार के अच्छे दिन हैं तो मोदी के अच्छे दिन इस देश में ज्यादा दिन नहीं चल सकते।

तीस्ता सेतलवाड : शुक्रिया बहुत बहुत वृंदाजी।

वृंदा करात :    आपका भी बहुत बहुत शुक्रिया।

END...