There is a concerted effort to change the basic secular character of the Indian Constitution: Justice PB Sawant, former SC Judge

       

   

Justice Sawant in conversation with Teesta Setalvad for Communalism Combat and Hille Le tv.

November 10, 2014

Hindi Transcript


तीस्ता सेतलवाड:        जस्टिस सावंत जी, आज हम धर्मनिरपेक्षता के ऊपर सरासर एक हमला देख रहे हैं, राजनीतिक और सामाजिक ताकतों की ओर से...धर्मनिरपेक्षता हमारे संविधान का एक बहुत अहम सिद्धांत है, कौन सी  ताकतें हैं, जो इसके ऊपर इस तरह का हमला कर रही हैं?

जस्टिस सावंत                       आज तो ऐसा दिखता  है कि हिन्दुओं का एक छोटा सा सेक्शन है, जो धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ है। वो चाहते हैं कि ये देश, हिन्दू देश हो जाये लेकिन ये लोग जो चाहते हैं वो हो ही नहीं सकता है क्योंकि ये हमारे कॉन्स्टिटूशन के बेसिक स्ट्रक्चर के खिलाफ होगा।  ये स्ट्रक्चर तो परिवर्तित नहीं हो सकता, कम से कम सिर्फ कानून से नहीं हो सकता। इसको बदलने के लिए  कॉन्स्टीटूएंट असेंबली बुलानी पड़ेगी। तो एक तरह से ये ठीक हुआ है कि सुप्रीम कोर्ट ने ये ले डाउन कर दिया है कि ये हमारे बेसिक स्ट्रक्चर का एक हिस्सा है और बेसिक स्ट्रक्चर कोई भी पार्लियामेंट सिर्फ कानून से दुरुस्त नहीं कर सकती।

तीस्ता सेतलवाड:         छू भी नहीं सकती।

जस्टिस सावंत:                        हां।

तीस्ता सेतलवाड:         जस्टिस सावंत, जो दूसरा बड़ा खतरा हम देख रहे हैं, वो प्रसार माध्यमों से है।  शायद जब आप प्रेस काउंसल के चेयरमैन थे तो पत्रकारिता और प्रसार माध्यम में ये खतरा आपको भी नजर आया था कि ग्रेटेस्ट डेंजर कॉर्पोरेटाइजेशन से हैं।  पूंजीवादी ताकतों ने जिस तरह प्रसार माध्यम और पत्रकारिता पर अपने आप को हावी किया है  तो अगर हमे देश में आज़ाद प्रसार माध्यम चाहिए, आज़ाद पत्रकारिता चाहिए, जिससे सामाजिक फेर बदल हो सके तो क्या होना चाहिए?

जस्टिस सावंत:                        प्रिंट हो या इलेक्ट्रॉनिक, इसके लिए तो हमे स्वतंत्र पत्रकारों का मीडिया आउटलेट ही बनाना पड़ेगा।

तीस्ता सेतलवाड        एज कोऑपरेटिव

जस्टिस सावंत:                        हां, एज अ कोऑपरेटिव या ए प्राइवेट लिमिटेड कंपनी सिर्फ पत्रकारों के लिए और उसमे जो बिज़नेस सेक्शन हैं वो प्रोफेशनल्स को देना पड़ेगा। जर्नलिस्ट को अपने जर्नलिस्ट कंटेंट पर फोकस करना पड़ेगा। हम लोग कॉर्पोरेटाइजेशन तो ख़त्म नहीं कर सकते हैं उसके ऊपर प्रतिबंध भी नहीं लगा सकते क्योंकि ये मीडिया प्रिंट मीडिया हो या इलेक्ट्रॉनिक मीडिया हो या आउटलेट, रन करने का सबको अधिकार है। तो इसके लिए जर्नलिस्टों को ही आगे आना पड़ेगा और अपनी कोऑपरेटिव सोसाइटी या कोऑपरेटिव कंपनी बनानी पड़ेगी।

तीस्ता सेतलवाड:         आपको लगता है कि ये हो सकता है?

जस्टिस सावंत                       हो सकता है जैसे कि फ्रांस में जो विश्वप्रसिद्ध अख़बार है ' मोंड' वो तो कई साल से चल रहा है। उनके बहुत असेट्स भी तैयार हो गए है।  वो साल दर साल अपने एडिटर बदलते हैं। नए एडिटर लाते हैं। वो काम चल रहा हैं। 

तीस्ता सेतलवाड:         नौजवानों के लिए कुछ खास बात ?

जस्टिस सावंत:                        नौजवानों को मेरी ये सलाह है कि आज जो हो रहा है, जो वो इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर वो देखते हैं-सुनते हैं, प्रिंट मीडिया में जो बांचते हैं, अपनी स्वतंत्र बुद्धि से उनका एनालिसिस करें, पृथक्करण करें। जो आया, वो हम लोगों ने वैसे ही कंज्यूम कर लिया, ये शिक्षित जवान या शिक्षित व्यक्ति के लक्षण नहीं हैं। अपनी स्वतंत्र बुद्धि से इसके ऊपर मंथन करना, विचार करना, इस तरह से अगर चलेंगे तो ही ये देश प्रगति पथ पर चलेगा, नहीं तो नहीं चलेगा।

तीस्ता सेतलवाड        बहुत बहुत शुक्रिया जस्टिस सावंत।

जस्टिस सावंत                       थैंक यू।

तीस्ता सेतलवाड:         बहुत बहुत शुक्रिया

जस्टिस सावंत:                        थैंक यू।